आ के बज़्म-ए-हस्ती में क्या बताएँ क्या पाया
हम को था ही क्या लेना बुत मिले ख़ुदा पाया
है मरज़ तो जो कुछ है थी दवा तो जैसी थी
चारासाज़ को हम ने हाँ घटा हुआ पाया
दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
एक एक अपने को हम ने दूसरा पाया
कम समझ में आते हैं अब तो उस के गुल-बूटे
हम ने नक़्श-ए-हस्ती को कुछ मिटा मिटा पाया
बैठ कर तो 'नातिक़' से बात की नहीं हम ने
राह चलते देखा था कुछ चला हुआ पाया
ग़ज़ल
आ के बज़्म-ए-हस्ती में क्या बताएँ क्या पाया
नातिक़ गुलावठी