EN اردو
आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे | शाही शायरी
aa gaya jab se nazar wo shoKH harjai mujhe

ग़ज़ल

आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे

इमाम बख़्श नासिख़

;

आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे
कू-ब-कू दर दर लिए फिरती है रुस्वाई मुझे

काम आशिक़ को किसी की ऐब-बीनी से नहीं
हुस्न-बीनी को ख़ुदा ने दी है बीनाई मुझे

जौर सहता हूँ बुतों के ना-तवानी के सबब
दिल उठा लूँ इस क़दर कब है तवानाई मुझे

जिस तरह आता है पीरी में जवानी का ख़याल
वस्ल की शब याद रोज़-ए-हिज्र में आई मुझे

गिनती एक इक नाम की हर गोर में मुर्दे हैं दफ़्न
बाद-ए-मुर्दन भी हुई दुश्वार तन्हाई मुझे

मिस्ल-ए-साग़र बज़्म-ए-आलम में मैं कब ख़ंदाँ हुआ
किस लिए देता है गर्दिश चर्ख़-ए-मीनाई मुझे

ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगी
आप सौदाई हैं जो कहते हैं सौदाई मुझे