आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे
कू-ब-कू दर दर लिए फिरती है रुस्वाई मुझे
काम आशिक़ को किसी की ऐब-बीनी से नहीं
हुस्न-बीनी को ख़ुदा ने दी है बीनाई मुझे
जौर सहता हूँ बुतों के ना-तवानी के सबब
दिल उठा लूँ इस क़दर कब है तवानाई मुझे
जिस तरह आता है पीरी में जवानी का ख़याल
वस्ल की शब याद रोज़-ए-हिज्र में आई मुझे
गिनती एक इक नाम की हर गोर में मुर्दे हैं दफ़्न
बाद-ए-मुर्दन भी हुई दुश्वार तन्हाई मुझे
मिस्ल-ए-साग़र बज़्म-ए-आलम में मैं कब ख़ंदाँ हुआ
किस लिए देता है गर्दिश चर्ख़-ए-मीनाई मुझे
ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगी
आप सौदाई हैं जो कहते हैं सौदाई मुझे
ग़ज़ल
आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे
इमाम बख़्श नासिख़