EN اردو
Waiz शायरी | शाही शायरी

Waiz

24 शेर

रहें न रिंद ये वाइज़ के बस की बात नहीं
तमाम शहर है दो चार दस की बात नहीं

कैफ़ी आज़मी




तशरीफ़ लाओ कूचा-ए-रिंदाँ में वाइज़ो
सीधी सी राह तुम को बता दें नजात की

लाला माधव राम जौहर




मुझे काफ़िर ही बताता है ये वाइज़ कम-बख़्त
मैं ने बंदों में कई बार ख़ुदा को देखा

मिर्ज़ा मायल देहलवी




तल्ख़ी तुम्हारे वाज़ में है वाइज़ो मगर
देखो तो किस मज़े की है तल्ख़ी शराब में

मिर्ज़ा मायल देहलवी




धोके से पिला दी थी उसे भी कोई दो घूँट
पहले से बहुत नर्म है वाइज़ की ज़बाँ अब

through guile we have managed to ply him with
now the priest's tone is much gentler than before

रियाज़ ख़ैराबादी




गुमाँ किस पर करें सूफ़ी इधर है उस तरफ़ वाइज़
ख़ुदा रक्खे मोहल्ले में सभी अल्लाह वाले हैं

साइल देहलवी




क्या मदरसे में दहर के उल्टी हवा बही
वाइज़ नही को अम्र कहे अम्र को नही

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम