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उर्दू शायरी | शाही शायरी

उर्दू

25 शेर

अब न वो अहबाब ज़िंदा हैं न रस्म-उल-ख़त वहाँ
रूठ कर उर्दू तो देहली से दकन में आ गई

काविश बद्री




बात करने का हसीं तौर-तरीक़ा सीखा
हम ने उर्दू के बहाने से सलीक़ा सीखा

मनीश शुक्ला




हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार
हम को उर्दू ज़बान आती है

मोहम्मद अली साहिल




तिरे सुख़न के सदा लोग होंगे गिरवीदा
मिठास उर्दू की थोड़ी बहुत ज़बान में रख

मुबारक अंसारी




ये तसर्रुफ़ है 'मुबारक' दाग़ का
क्या से क्या उर्दू ज़बाँ होती गई

मुबारक अज़ीमाबादी




मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई

मुनव्वर राना




अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
दो-ज़ानू है मिरी तब-ए-रसा तरकीब-ए-उर्दू से

मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता