शहर का भी दस्तूर वही जंगल वाला
खोजने वाले ही अक्सर खो जाते हैं
ख़ालिद इबादी
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इक और खेत पक्की सड़क ने निगल लिया
इक और गाँव शहर की वुसअत में खो गया
ख़ालिद सिद्दीक़ी
मेरे ही संग-ओ-ख़िश्त से तामीर-ए-बाम-ओ-दर
मेरे ही घर को शहर में शामिल कहा न जाए
मजरूह सुल्तानपुरी
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ऐसा हंगामा न था जंगल में
शहर में आए तो डर लगता था
मोहम्मद अल्वी
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दिल तो मेरा उदास है 'नासिर'
शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है
नासिर काज़मी