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अच्छे-ख़ासे लोग बुरे हो जाते हैं | शाही शायरी
achchhe-KHase log bure ho jate hain

ग़ज़ल

अच्छे-ख़ासे लोग बुरे हो जाते हैं

ख़ालिद इबादी

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अच्छे-ख़ासे लोग बुरे हो जाते हैं
जागने का दावा कर के सो जाते हैं

शहर का भी दस्तूर वही जंगल वाला
खोजने वाले ही अक्सर खो जाते हैं

दीवानों की घात में बैठने वाले लोग
सुनते हैं इक दिन पागल हो जाते हैं

उस की गली में जा कर उस से उलझेंगे
साथ अगर होना है हो लो जाते हैं

हम जैसों को हैरत भी होती होगी
एक इधर आता है उधर दो जाते हैं

हिम्मत हार गए तो बाज़ी हार गए
लौट जा तू भी हम भी घर को जाते हैं