कौन उस राह से गुज़रता है
दिल यूँही इंतिज़ार करता है
देख कर भी न देखने वाले
दिल तुझे देख देख डरता है
शहर-ए-गुल में कटी है सारी रात
देखिए दिन कहाँ गुज़रता है
ध्यान की सीढ़ियों पे पिछले पहर
कोई चुपके से पाँव धरता है
दिल तो मेरा उदास है 'नासिर'
शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है
ग़ज़ल
कौन उस राह से गुज़रता है
नासिर काज़मी