मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है
अहमद नदीम क़ासमी
दिन में परियों की कोई कहानी न सुन
जंगलों में मुसाफ़िर भटक जाएँगे
बशीर बद्र
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
बशीर बद्र
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
बशीर बद्र
तुम्हारे साथ ही उस को भी डूब जाना है
ये जानता है मुसाफ़िर तिरे सफ़ीने का
फ़ारिग़ बुख़ारी
हम मुसाफ़िर हैं गर्द-ए-सफ़र हैं मगर ऐ शब-ए-हिज्र हम कोई बच्चे नहीं
जो अभी आँसुओं में नहा कर गए और अभी मुस्कुराते पलट आएँगे
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ज़रा रहने दो अपने दर पे हम ख़ाना-ब-दोशों को
मुसाफ़िर जिस जगह आराम पाते हैं ठहरते हैं
लाला माधव राम जौहर