हँसी में कटती थीं रातें ख़ुशी में दिन गुज़रता था
'कँवल' माज़ी का अफ़्साना न तुम भूले न हम भूले
कँवल डिबाइवी
याद-ए-माज़ी की पुर-असरार हसीं गलियों में
मेरे हमराह अभी घूम रहा है कोई
ख़ुर्शीद अहमद जामी
कई ना-आश्ना चेहरे हिजाबों से निकल आए
नए किरदार माज़ी की किताबों से निकल आए
ख़ुशबीर सिंह शाद
अल्लाह-रे बे-ख़ुदी कि चला जा रहा हूँ मैं
मंज़िल को देखता हुआ कुछ सोचता हुआ
मुईन अहसन जज़्बी
टहनी पे ख़मोश इक परिंदा
माज़ी के उलट रहा है दफ़्तर
रईस अमरोहवी
माज़ी से उभरीं वो ज़िंदा तस्वीरें
उतर गया सब नश्शा नए पुराने का
राजेन्द्र मनचंदा बानी
माज़ी-ए-मरहूम की नाकामियों का ज़िक्र छोड़
ज़िंदगी की फ़ुर्सत-ए-बाक़ी से कोई काम ले
सीमाब अकबराबादी