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शिकवा ज़बान से न कभी आश्ना हुआ | शाही शायरी
shikwa zaban se na kabhi aashna hua

ग़ज़ल

शिकवा ज़बान से न कभी आश्ना हुआ

मुईन अहसन जज़्बी

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शिकवा ज़बान से न कभी आश्ना हुआ
नज़रों से कह दिया जो मिरा मुद्दआ हुआ

अल्लाह-री बे-ख़ुदी कि चला जा रहा हूँ मैं
मंज़िल को देखता हुआ कुछ सोचता हुआ

दुनिया लरज़ गई दिल-ए-ईज़ा-पसंद की
ना-आश्ना-ए-दर्द जो दर्द-आश्ना हुआ

फिर ऐ दिल-ए-शिकस्ता कोई नग़्मा छेड़ दे
फिर आ रहा है कोई इधर झूमता हुआ