तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है शर्त-ए-बेदारी
ख़याल-ए-अज़्मत-ए-माज़ी को छोड़ हाल को देख
सिकंदर अली वज्द
ये जो माज़ी की बात करते हैं
सोचते होंगे हाल से आगे
ताहिर अज़ीम
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तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है शर्त-ए-बेदारी
ख़याल-ए-अज़्मत-ए-माज़ी को छोड़ हाल को देख
सिकंदर अली वज्द
ये जो माज़ी की बात करते हैं
सोचते होंगे हाल से आगे
ताहिर अज़ीम