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किताब शायरी | शाही शायरी

किताब

24 शेर

रख दी है उस ने खोल के ख़ुद जिस्म की किताब
सादा वरक़ पे ले कोई मंज़र उतार दे

प्रेम कुमार नज़र




रहता था सामने तिरा चेहरा खुला हुआ
पढ़ता था मैं किताब यही हर क्लास में

शकेब जलाली




किताब-ए-हुस्न है तू मिल खुली किताब की तरह
यही किताब तो मर मर के मैं ने अज़बर की

शाज़ तमकनत