EN اردو
Hausla शायरी | शाही शायरी

Hausla

37 शेर

जिन हौसलों से मेरा जुनूँ मुतमइन न था
वो हौसले ज़माने के मेयार हो गए

अली जव्वाद ज़ैदी




दामन झटक के वादी-ए-ग़म से गुज़र गया
उठ उठ के देखती रही गर्द-ए-सफ़र मुझे

अली सरदार जाफ़री




आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही

अल्लामा इक़बाल




नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में

अल्लामा इक़बाल




तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

अल्लामा इक़बाल




सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती
चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की

अल्ताफ़ हुसैन हाली




तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर
सरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर

अमीर मीनाई