मैं जाग जाग के किस किस का इंतिज़ार करूँ
जो लोग घर नहीं पहुँचे वो मर गए होंगे
इरफ़ान सत्तार
दीवार-ओ-दर पे ख़ून के छींटे हैं जा-ब-जा
बिखरा हुआ है रंग-ए-हिना तेरे शहर में
कैफ़ अज़ीमाबादी
इस क़दर मैं ने सुलगते हुए घर देखे हैं
अब तो चुभने लगे आँखों में उजाले मुझ को
कामिल बहज़ादी
ये कौन आग लगाने पे है यहाँ मामूर
ये कौन शहर को मक़्तल बनाने वाला है
ख़ुर्शीद रब्बानी
देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएँगी लाशें
ढूँडोगे तो इस शहर में क़ातिल न मिलेगा
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर
हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना
उबैदुल्लाह अलीम
जले मकानों में भूत बैठे बड़ी मतानत से सोचते हैं
कि जंगलों से निकल के आने की क्या ज़रूरत थी आदमी को
प्रकाश फ़िक्री