गुमान ख़ाक में सब के मिलाने वाला है
कोई चराग़ हवाएँ बुझाने वाला है
उफ़ुक़ उफ़ुक़ पे महकती हुई शफ़क़ से खुला
कोई सितारा कहीं जगमगाने वाला है
न जाने कौन पस-ए-चश्म है जुनूँ-पेशा
जो आँसुओं के ख़ज़ाने लुटाने वाला है
ये कौन आग लगाने पे है यहाँ मामूर
ये कौन शहर को मक़्तल बनाने वाला है
ग़ज़ल
गुमान ख़ाक में सब के मिलाने वाला है
ख़ुर्शीद रब्बानी