हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार
हवा के हाथ में इक आब-दार ख़ंजर था
राही फ़िदाई
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ऐसी हवा बही कि है चारों तरफ़ फ़साद
जुज़ साया-ए-ख़ुदा कहीं दार-उल-अमाँ नहीं
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
घरों में क़ैद हैं बस्ती के शोरफ़ा
सड़क पर हैं फ़सादी और गुंडे
तनवीर सामानी
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