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दुश्मन शायरी | शाही शायरी

दुश्मन

32 शेर

आ गया 'जौहर' अजब उल्टा ज़माना क्या कहें
दोस्त वो करते हैं बातें जो अदू करते नहीं

लाला माधव राम जौहर




ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ
दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है

लाला माधव राम जौहर




जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ
दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो

लाला माधव राम जौहर




कू-ए-जानाँ में न ग़ैरों की रसाई हो जाए
अपनी जागीर ये या-रब न पराई हो जाए

लाला माधव राम जौहर




उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

निदा फ़ाज़ली




दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन

परवीन शाकिर




दुनिया में हम रहे तो कई दिन प इस तरह
दुश्मन के घर में जैसे कोई मेहमाँ रहे

I did stay in this world but twas in such a way
a guest who in the house of his enemy does stay

क़ाएम चाँदपुरी