इक बरस भी अभी नहीं गुज़रा
कितनी जल्दी बदल गए चेहरे
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
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हाथ छुड़ा कर जाने वाले
मैं तुझ को अपना समझा था
ख़ालिद मोईन
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'ख़ालिद' मैं बात बात पे कहता था जिस को जान
वो शख़्स आख़िरश मुझे बे-जान कर गया
ख़ालिद शरीफ़
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मुझे अब आप ने छोड़ा कि मैं ने
इधर तो देखिए किस ने दग़ा की
लाला माधव राम जौहर
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समझा लिया फ़रेब से मुझ को तो आप ने
दिल से तो पूछ लीजिए क्यूँ बे-क़रार है
लाला माधव राम जौहर
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है
दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
माहिर-उल क़ादरी
अक्सर ऐसा भी मोहब्बत में हुआ करता है
कि समझ-बूझ के खा जाता है धोका कोई
मज़हर इमाम
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