बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी'
बेचारे ने फिर तुम को कहीं देख लिया है
आसी उल्दनी
क़ौल 'आबरू' का था कि न जाऊँगा उस गली
हो कर के बे-क़रार देखो आज फिर गया
आबरू शाह मुबारक
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी
चलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो
आफ़ताब हुसैन
बे-क़रारी थी सब उम्मीद-ए-मुलाक़ात के साथ
अब वो अगली सी दराज़ी शब-ए-हिज्राँ में नहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को
तू कहाँ ऐ बे-क़रारी जाएगी
अमीरुल्लाह तस्लीम
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगरना ज़माने में क्या न था
आज़ाद अंसारी