पारसाई उन की जब याद आएगी
मुझ से मेरी आरज़ू शरमाएगी
गर यही है पास-ए-आदाब-ए-सुकूत
किस तरह फ़रियाद लब तक आएगी
ये तो माना देख आएँ कू-ए-यार
फिर तमन्ना और कुछ फ़रमाएगी
जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को
तू कहाँ ऐ बे-क़रारी जाएगी
हिज्र की शब गर यही है इज़्तिराब
नींद ऐ 'तस्लीम' क्यूँकर आएगी
ग़ज़ल
पारसाई उन की जब याद आएगी
अमीरुल्लाह तस्लीम