हाँ कैफ़-ए-बे-ख़ुदी की वो साअत भी याद है
महसूस कर रहा था ख़ुदा हो गया हूँ मैं
हफ़ीज़ जालंधरी
पा-ब-गिल बे-ख़ुदी-ए-शौक़ से मैं रहता था
कूचा-ए-यार में हालत मिरी दीवार की थी
हैदर अली आतिश
अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे घर के आस-पास
हर दर पे दी सदा तिरे दर के ख़याल में
जगन्नाथ आज़ाद
तिरा वस्ल है मुझे बे-ख़ुदी तिरा हिज्र है मुझे आगही
तिरा वस्ल मुझ को फ़िराक़ है तिरा हिज्र मुझ को विसाल है
जलालुद्दीन अकबर
ऐ बे-ख़ुदी सलाम तुझे तेरा शुक्रिया
दुनिया भी मस्त मस्त है उक़्बा भी मस्त मस्त
जावेद सबा
अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे
वो आ भी जाएँ तो आए न ऐतबार मुझे
ख़ुमार बाराबंकवी
न तो होश से तआरुफ़ न जुनूँ से आश्नाई
ये कहाँ पहुँच गए हैं तिरी बज़्म से निकल के
what is this place that I have reached, having left your company
ख़ुमार बाराबंकवी