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तिरा वस्ल है मुझे बे-ख़ुदी तिरा हिज्र है मुझे आगही | शाही शायरी
tera wasl hai mujhe be-KHudi tera hijr hai mujhe aagahi

ग़ज़ल

तिरा वस्ल है मुझे बे-ख़ुदी तिरा हिज्र है मुझे आगही

जलालुद्दीन अकबर

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तिरा वस्ल है मुझे बे-ख़ुदी तिरा हिज्र है मुझे आगही
तिरा वस्ल मुझ को फ़िराक़ है तिरा हिज्र मुझ को विसाल है

मैं हूँ दर पर उस के पड़ा हुआ मुझे और चाहिए क्या भला
मुझे बे-परी का हो क्या गला मिरी बे-परी पर-ओ-बाल है

वही मैं हूँ और वही ज़िंदगी वही सुब्ह ओ शाम की सर ख़ुशी
वही मेरा हुस्न-ए-ख़याल है वही उन की शान-ए-जमाल है