अबस दिल बे-कसी पे अपनी अपनी हर वक़्त रोता है
न कर ग़म ऐ दिवाने इश्क़ में ऐसा ही होता है
ख़ान आरज़ू सिराजुद्दीन अली
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आँखें भी हाए नज़अ में अपनी बदल गईं
सच है कि बेकसी में कोई आश्ना नहीं
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
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मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
तुझ से बिछड़ के ज़िंदगी दुनिया से जा मिली
साक़ी फ़ारुक़ी
क्यूँ मोज़ाहिम है मेरे आने से
कुइ तिरा घर नहीं ये रस्ता है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
हमारी बेकसी को देख कर सारा जहाँ रोया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी