निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़
अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा
आरज़ू लखनवी
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
आरज़ू लखनवी
इस अदा से मुझे सलाम किया
एक ही आन में ग़ुलाम किया
आसिफ़ुद्दौला
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अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी
दिया है जिस ने तुम जैसे को दिल उस का जिगर देखो
बेख़ुद देहलवी
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बोले वो मुस्कुरा के बहुत इल्तिजा के ब'अद
जी तो ये चाहता है तिरी मान जाइए
बेख़ुद देहलवी
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वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना
जवानी अदाएँ सिखाती हैं क्या क्या
बेख़ुद देहलवी
साथ शोख़ी के कुछ हिजाब भी है
इस अदा का कहीं जवाब भी है
दाग़ देहलवी