मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!
तू ही बता दे नाज़ से ईमान-ए-आरज़ू!
आँसू निकल रहे हैं तसव्वुर में बन के फूल
शादाब हो रहा है गुलिस्तान-ए-आरज़ू!
ईमान ओ जाँ निसार तिरी इक निगाह पर
तू जान-ए-आरज़ू है तू ईमान-ए-आरज़ू!
होने को है तुलूअ सबाह-ए-शब-ए-विसाल
बुझने को है चराग़-ए-शबिस्तान-ए-आरज़ू!
इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर
इक हम कि हैं अभी से पशीमान-ए-आरज़ू!
आँखों से जू-ए-ख़ूँ है रवाँ दिल है दाग़ दाग़
देखे कोई बहार-ए-गुलिस्तान-ए-आरज़ू!
दिल में नशात-ए-रफ़्ता की धुँदली सी याद है
या शम-ए-वस्ल है तह-ए-दामान-ए-आरज़ू!
'अख़्तर' को ज़िंदगी का भरोसा नहीं रहा
जब से लुटा चुके सर-ओ-सामान-ए-आरज़ू!
ग़ज़ल
मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!
अख़्तर शीरानी