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मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू! | शाही शायरी
main aarzu-e-jaan likhun ya jaan-e-arzu!

ग़ज़ल

मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!

अख़्तर शीरानी

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मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!
तू ही बता दे नाज़ से ईमान-ए-आरज़ू!

आँसू निकल रहे हैं तसव्वुर में बन के फूल
शादाब हो रहा है गुलिस्तान-ए-आरज़ू!

ईमान ओ जाँ निसार तिरी इक निगाह पर
तू जान-ए-आरज़ू है तू ईमान-ए-आरज़ू!

होने को है तुलूअ सबाह-ए-शब-ए-विसाल
बुझने को है चराग़-ए-शबिस्तान-ए-आरज़ू!

इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर
इक हम कि हैं अभी से पशीमान-ए-आरज़ू!

आँखों से जू-ए-ख़ूँ है रवाँ दिल है दाग़ दाग़
देखे कोई बहार-ए-गुलिस्तान-ए-आरज़ू!

दिल में नशात-ए-रफ़्ता की धुँदली सी याद है
या शम-ए-वस्ल है तह-ए-दामान-ए-आरज़ू!

'अख़्तर' को ज़िंदगी का भरोसा नहीं रहा
जब से लुटा चुके सर-ओ-सामान-ए-आरज़ू!