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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

कम समझते नहीं हम ख़ुल्द से मयख़ाने को
दीदा-ए-हूर कहा चाहिए पैमाने को

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम




कम समझते नहीं हम ख़ुल्द से मयख़ाने को
दीदा-ए-हूर कहा चाहिए पैमाने को

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम




ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की
ग़म-ए-दीं भी अगर समझो तो इक धंदा है दुनिया का

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम




कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
हाथ में तस्बीह हो या दोश पर ज़ुन्नार हो

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम




कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
हाथ में तस्बीह हो या दोश पर ज़ुन्नार हो

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम




क्या खाएँ हम वफ़ा में अब ईमान की क़सम
जब तार-ए-सुब्हा रिश्ता-ए-ज़ुन्नार हो चुका

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम




क्या मेरे काम से है रवाई को दुश्मनी
कश्ती मिरी खुली थी कि दरिया ठहर गया

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम