बढ़ते बढ़ते आतिश-ए-रुख़्सार लौ देने लगी
रफ़्ता रफ़्ता कान के मोती शरारे हो गए
तअशशुक़ लखनवी
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अदम से दहर में आना किसे गवारा था
कशाँ कशाँ मुझे लाई है आरज़ू तेरी
तअशशुक़ लखनवी