जलूँगा मैं कि दिल उस बुत का ग़ैर पर आया
उड़ेगी आग कि पत्थर गिरा है पत्थर पर
तअशशुक़ लखनवी
हर तरफ़ हश्र में झंकार है ज़ंजीरों की
उन की ज़ुल्फ़ों के गिरफ़्तार चले आते हैं
तअशशुक़ लखनवी
हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी
सब ख़्वाब में थे रात को बेदार हमीं थे
तअशशुक़ लखनवी
गया शबाब पर इतना रहा तअल्लुक़-ए-इश्क़
दिल ओ जिगर में तपक गाह गाह होती है
तअशशुक़ लखनवी
देते फिरते थे हसीनों की गली में आवाज़
कभी आईना-फ़रोश-ए-दिल-ए-हैरान हम थे
तअशशुक़ लखनवी
चिराग़-दाग़ मैं दिन से जलाए बैठा हूँ
सुना है जो शब-ए-फ़ुर्क़त सियाह होती है
तअशशुक़ लखनवी
चला घर से वो बहर-ए-हुस्न अल्लाह रे कशिश दिल की
अजब क़तरा है जो खींचे लिए जाता है दरिया को
तअशशुक़ लखनवी
बहुत मुज़िर दिल-ए-आशिक़ को आह होती है
इसी हवा से ये कश्ती तबाह होती है
तअशशुक़ लखनवी
बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे
आप को हुस्न मुबारक हो मिरा दिल मुझ को
तअशशुक़ लखनवी