जाने किस की थी ख़ता याद नहीं
हम हुए कैसे जुदा याद नहीं
सूफ़ी तबस्सुम
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जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
दर्द के उनवाँ बदल कर रह गए
सूफ़ी तबस्सुम
कौन किस का ग़म खाए कौन किस को बहलाए
तेरी बे-कसी तन्हा मैरी बेबसी तन्हा
सूफ़ी तबस्सुम
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खुल के रोने की तमन्ना थी हमें
एक दो आँसू निकल कर रह गए
सूफ़ी तबस्सुम
कितनी फ़रियादें लबों पर रुक गईं
कितने अश्क आहों में ढल कर रह गए
सूफ़ी तबस्सुम
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मिलते गए हैं मोड़ नए हर मक़ाम पर
बढ़ती गई है दूरियाँ मंज़िल जगह जगह
सूफ़ी तबस्सुम
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रोज़ दोहराते थे अफ़्साना-ए-दिल
किस तरह भूल गया याद नहीं
सूफ़ी तबस्सुम
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