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सिराज लखनवी शायरी | शाही शायरी

सिराज लखनवी शेर

54 शेर

चराग़ सज्दा जला के देखो है बुत-कदा दफ़्न ज़ेर-ए-काबा
हुदूद-ए-इस्लाम ही के अंदर ये सरहद-ए-काफ़िरी मिलेगी

सिराज लखनवी




दाम-बर-दोश फिरें चाहे वो गेसू बर-दोश
सैद बन बन के हमीं ने उन्हें सय्याद किया

सिराज लखनवी




दम घुटा जाता है मोहब्बत का
बंद ही बंद गुफ़्तुगू है अभी

सिराज लखनवी




दिया है दर्द तो रंग-ए-क़ुबूल दे ऐसा
जो अश्क आँख से टपके वो दास्ताँ हो जाए

सिराज लखनवी




एक एक से भीक आँसुओं की माँग रहा हूँ
किस ने मुझे झोंका है जहन्नम की फ़ज़ा में

सिराज लखनवी




आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में

as my eyes did ope my yearnings did rebound
for I lost the person who in my dreams I found

सिराज लखनवी




हाँ तुम को भूल जाने की कोशिश करेंगे हम
तुम से भी हो सके तो न आना ख़याल में

सिराज लखनवी




हैरान हैं अब जाएँ कहाँ ढूँडने तुम को
आईना-ए-इदराक में भी तुम नहीं रहते

सिराज लखनवी




हर अश्क-ए-सुर्ख़ है दामान-ए-शब में आग का फूल
बग़ैर शम्अ के भी जल रहे हैं परवाने

सिराज लखनवी