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सिराज लखनवी शायरी | शाही शायरी

सिराज लखनवी शेर

54 शेर

ग़ुस्ल-ए-तौबा के लिए भी नहीं मिलती है शराब
अब हमें प्यास लगी है तो कोई जाम नहीं

सिराज लखनवी




आँखों पर अपनी रख कर साहिल की आस्तीं को
हम दिल के डूबने पर आँसू बहा रहे हैं

सिराज लखनवी




आँसू हैं कफ़न-पोश सितारे हैं कफ़न-रंग
लो चाक किए देते हैं दामान-ए-सहर हम

सिराज लखनवी




आग और धुआँ और हवस और है इश्क़ और
हर हौसला-ए-दिल को मोहब्बत नहीं कहते

सिराज लखनवी




आप के पाँव के नीचे दिल है
इक ज़रा आप को ज़हमत होगी

सिराज लखनवी




अभी रक्खा रहने दो ताक़ पर यूँही आफ़्ताब का आइना
कि अभी तो मेरी निगाह में वही मेरा माह-ए-तमाम है

सिराज लखनवी




बड़ों-बड़ों के क़दम डगमगाए जाते हैं
पड़ा है काम बदलते हुए ज़माने से

सिराज लखनवी




चमक शायद अभी गीती के ज़र्रों की नहीं देखी
सितारे मुस्कुराते क्यूँ हैं ज़ेब-ए-आसमाँ हो कर

सिराज लखनवी




चंद तिनकों की सलीक़े से अगर तरतीब हो
बिजलियों को भी तवाफ़-ए-आशियाँ करना पड़े

सिराज लखनवी