ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी
अगर सब जम'अ करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
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ज़िंदगानी दर्द-ए-सर है यार बिन
कुइ हमारे सर कूँ आ कर झाड़ दे
सिराज औरंगाबादी
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