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शारिक़ कैफ़ी शायरी | शाही शायरी

शारिक़ कैफ़ी शेर

49 शेर

बीनाई भी क्या क्या धोके देती है
दूर से देखो सारे दरिया नीले हैं

शारिक़ कैफ़ी




आओ गले मिल कर ये देखें
अब हम में कितनी दूरी है

शारिक़ कैफ़ी




बहुत हिम्मत का है ये काम 'शारिक़'
कि शरमाते नहीं डरते हुए हम

शारिक़ कैफ़ी




बहुत हसीं रात है मगर तुम तो सो रहे हो
निकल के कमरे से इक नज़र चाँदनी तो देखो

शारिक़ कैफ़ी




बहुत गदला था पानी उस नदी का
मगर मैं अपना चेहरा देख आया

शारिक़ कैफ़ी




बहुत भटके तो हम समझे हैं ये बात
बुरा ऐसा नहीं अपना मकाँ भी

शारिक़ कैफ़ी




अजब लहजे में करते थे दर ओ दीवार बातें
मिरे घर को भी शायद मेरी आदत अब हुई है

शारिक़ कैफ़ी




अचानक हड़बड़ा कर नींद से मैं जाग उट्ठा हूँ
पुराना वाक़िआ है जिस पे हैरत अब हुई है

शारिक़ कैफ़ी




अभी तो अच्छी लगेगी कुछ दिन जुदाई की रुत
अभी हमारे लिए ये सब कुछ नया नया है

शारिक़ कैफ़ी