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दुनिया शायद भूल रही है | शाही शायरी
duniya shayad bhul rahi hai

ग़ज़ल

दुनिया शायद भूल रही है

शारिक़ कैफ़ी

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दुनिया शायद भूल रही है
चाहत कुछ ऊँचा सुनती है

जब चादर सर से ओढ़ी है
मौत सिरहाने पर देखी है

इतना सच्चा लगता है वो
देखो तो हैरत होती है

क़ुर्ब की साअत तो यारों को
चुप करने में गुज़र जाती है

आओ गले मिल कर ये देखें
अब हम में कितनी दूरी है

फ़ैसले औरों के करता हूँ
अपनी सज़ा कटती रहती है

युग बीते दुनिया में आए
सोच वही मेहमानों सी है

चलना भी इक आदत है बस
सारी थकन आज़ादी की है