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दिल ओ दिमाग़ में एहसास-ए-ग़म उभार दिया | शाही शायरी
dil o dimagh mein ehsas-e-gham ubhaar diya

ग़ज़ल

दिल ओ दिमाग़ में एहसास-ए-ग़म उभार दिया

शहज़ाद अहमद

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दिल ओ दिमाग़ में एहसास-ए-ग़म उभार दिया
ये किस ने आज मुझे मुज़्दा-ए-बहार दिया

तिरे जिलौ में बढ़ी है चमन की शादाबी
गुलों का रंग तिरे हुस्न ने निखार दिया

ज़रा लबों के तबस्सुम से बज़्म गर्माएँ
हमें तो आप की आँखों की चुप ने मार दिया

वो बार बार मुझे मेहरबाँ नज़र आए
मुझे फ़रेब निगाहों ने बार बार दिया

तुम्ही कहो तुम्हें किस की निगाह ले डूबी
मुझे तो ख़ैर मिरी सादगी ने मार दिया

अजीब बात है दिल डूब डूब जाता है
अजीब रात है बुझता है बार बार दिया

हमें वो साहिब-ए-आलाम दहर में 'शहज़ाद'
ज़रा हँसे तो ज़माने का ग़म निखार दिया