मत पूछ वारदात-ए-शब-ए-हिज्र ऐ 'नसीर'
मैं क्या कहूँ जो कार-ए-नुमायान-ए-नाला था
शाह नसीर
मय-कशी का है ये शौक़ उस को कि आईने में
कान के झुमके को अंगूर का ख़ोशा समझा
शाह नसीर
मैं उस की चश्म का बीमार-ए-ना-तवाँ हूँ तबीब
जो मेरे हक़ में मुनासिब हो वो दवा ठहरा
शाह नसीर
ले गया दे एक बोसा अक़्ल ओ दीन ओ दिल वो शोख़
क्या हिसाब अब कीजे कुछ अपना ही फ़ाज़िल रह गया
शाह नसीर
लगाई किस बुत-ए-मय-नोश ने है ताक उस पर
सुबू-ब-दोश है साक़ी जो आबला दिल का
शाह नसीर
लगा न दिल को तू अपने किसी से देख 'नसीर'
बुरा न मान कि इस में नहीं भला दिल का
शाह नसीर
लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में
बहम हर मौज से चलने लगी तलवार पानी में
शाह नसीर
लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का
भँवर काले के दफ़ बाजे है मौज ऐ यार पानी में
शाह नसीर
क्यूँ मय के पीने से करूँ इंकार नासेहा
ज़ाहिद नहीं वली नहीं कुछ पारसा नहीं
शाह नसीर