हम दिखाएँगे तमाशा तुझ को फिर सर्व-ए-चमन
दिल से गर सरज़द हमारे नाला-ए-मौज़ूँ हुआ
शाह नसीर
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ग़ुरूर-ए-हुस्न न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख
किया है इश्क़ ने यूसुफ़ ग़ुलाम आशिक़ का
शाह नसीर
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ग़ज़ल इस बहर में क्या तुम ने लिखी है ये 'नसीर'
जिस से है रंग-ए-गुल-ए-मअनी-ए-मुश्किल टपका
शाह नसीर
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गर्दिश-ए-चर्ख़ नहीं कम भी हंडोले से कि महर
शाम को माह से ऊँचा है सहर है नीचा
शाह नसीर
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