मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर
मिरे लबों पे जो रहता है उस का नाम है क्या
सरफ़राज़ ख़ालिद
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मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए
चीख़ता रहता है सहरा-ए-बदन के अंदर
सरफ़राज़ ख़ालिद
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