आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
मुझ से मिलती ही नहीं शक्ल-ओ-शबाहत मेरी
सरफ़राज़ ख़ालिद
होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही
जब कि हम भूल गए ख़ुद को वो तब याद आया
सरफ़राज़ ख़ालिद
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
वो ख़ुदा है तो गुनहगार नहीं हूँ मैं भी
सरफ़राज़ ख़ालिद
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद
सौदा कोई हमारे भी सर में नहीं रहा
सरफ़राज़ ख़ालिद
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
तो फिर तुम ही बताओ आज क्या क्या होने वाला है
सरफ़राज़ ख़ालिद
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
रात की तन्हाइयों में ख़ूब रोना चाहिए था
सरफ़राज़ ख़ालिद
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
तुम ही बताओ कि क़िस्सा ये किस किताब का है
सरफ़राज़ ख़ालिद
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
और याद मुझे कोई कहानी भी नहीं है
सरफ़राज़ ख़ालिद
मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत
किसी सफ़र के हवाले ये जिस्म-ओ-जाँ कर के
सरफ़राज़ ख़ालिद