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सरफ़राज़ ख़ालिद शायरी | शाही शायरी

सरफ़राज़ ख़ालिद शेर

47 शेर

उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
ये उस का काम नहीं है तो मेरा काम है क्या

सरफ़राज़ ख़ालिद




वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही
हम भी खड़े रहे दर-ओ-दीवार की तरह

सरफ़राज़ ख़ालिद




वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई नहीं देता
रह जाती हैं सायों में उलझ कर मिरी आँखें

सरफ़राज़ ख़ालिद




वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
सो पा लिया है उसे ख़ुद को राएगाँ कर के

सरफ़राज़ ख़ालिद




ये काएनात भी क्या क़ैद-ख़ाना है कोई
ये ज़िंदगी भी कोई तर्ज़-ए-इंतिक़ाम है क्या

सरफ़राज़ ख़ालिद




ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब
एक दिन तू भी मिरी बातों से उकता जाएगा

सरफ़राज़ ख़ालिद




हमारे काँधे पे इस बार सिर्फ़ आँखें हैं
हमारे काँधे पे इस बार सर नहीं है कोई

सरफ़राज़ ख़ालिद




आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
तुम भूल गए हो तो किसे ध्यान रहेगा

सरफ़राज़ ख़ालिद




अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
अब जिस्म के अंदर वो रहता ही नहीं होगा

सरफ़राज़ ख़ालिद