ऐ शैख़ अपना जुब्बा-ए-अक़्दस सँभालिये
मस्त आ रहे हैं चाक गरेबाँ किए हुए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
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आशिक़-मिज़ाज रहते हैं हर वक़्त ताक में
सीना को इस तरह से उभारा न कीजिए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
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