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सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी शायरी | शाही शायरी

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी शेर

29 शेर

हैं वही इंसाँ उठाते रंज जो होते ही कज
टेढ़ी हो कर डूबती है नाव अक्सर आब में

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी




गो हम शराब पीते हमेशा हैं दे के नक़्द
लेकिन मज़ा कुछ और ही पाया उधार में

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी




गरेबाँ हम ने दिखलाया उन्हों ने ज़ुल्फ़ दिखलाई
हमारा समझे वो मतलब हम उन का मुद्दआ' समझे

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी




एक मुद्दत में बढ़ाया तू ने रब्त
अब घटाना थोड़ा थोड़ा चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी




धर के हाथ अपना जिगर पर मैं वहीं बैठ गया
जब उठे हाथ वो कल रख के कमर पर अपना

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी




डराएगी हमें क्या हिज्र की अँधेरी रात
कि शम्अ' बैठे हैं पहले ही हम बुझाए हुए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी




चाहने वालों को चाहा चाहिए
जो न चाहे फिर उसे क्या चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी




भूल कर ले गया सू-ए-मंज़िल
ऐसे रहज़न को रहनुमा कहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी




ऐ शैख़ ये जो मानें का'बा ख़ुदा का घर है
बुत-ख़ाना में बता तू फिर कौन जल्वा-गर है

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी