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पंडित दया शंकर नसीम लखनवी शायरी | शाही शायरी

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी शेर

14 शेर

लाए उस बुत को इल्तिजा कर के
कुफ़्र टूटा ख़ुदा ख़ुदा कर के

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी




मअ'नी-ए-रौशन जो हों तो सौ से बेहतर एक शेर
मतला-ए-ख़ुर्शीद काफ़ी है पए-दीवान-ए-सुब्ह

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी




मकान सीने का पाता हूँ दम-ब-दम ख़ाली
नज़र बचा के तू ऐ दिल किधर को जाता है

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी




समझा है हक़ को अपने ही जानिब हर एक शख़्स
ये चाँद उस के साथ चला जो जिधर गया

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी




सुब्ह-दम ग़ाएब हुए 'अंजुम' तो साबित हो गया
ख़ंदा-ए-बेहूदा पर तोड़े गए दंदान-ए-सुब्ह

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी