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नातिक़ गुलावठी शायरी | शाही शायरी

नातिक़ गुलावठी शेर

109 शेर

ख़त्म करना चाहता हूँ पेच-ओ-ताब-ए-ज़िंदगी
याद-ए-गेसू ज़ोर-ए-बाज़ू बन मिरे शाने में आ

नातिक़ गुलावठी




खो दिया शोहरत ने अपनी शेर-ख़्वानी का मज़ा
दाद मिल जाती है 'नातिक़' हर रतब याबिस के बा'द

नातिक़ गुलावठी




कीजिए कार-ए-ख़ैर में हाजत-ए-इस्तिख़ारा क्या
कीजिए शग़्ल-ए-मय-कशी इस में किसी की राय क्यूँ

नातिक़ गुलावठी




किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
वक़्त की ये बातें हैं वक़्त अब कहाँ अपना

नातिक़ गुलावठी




कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं
कीजिए सब कुछ मगर अपनी ज़रूरत देख कर

नातिक़ गुलावठी




क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
किस से मिलना है ख़ाक में मिल के

नातिक़ गुलावठी




क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
क्या किया करते हैं सदमों से हिरासाँ हो कर

नातिक़ गुलावठी




लो जुनूँ की सवारी आ पहुँची
मेरे दामन पे चल रहा है चाक

नातिक़ गुलावठी




मय को मिरे सुरूर से हासिल सुरूर था
मैं था नशे में चूर नशा मुझ में चूर था

नातिक़ गुलावठी