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नातिक़ गुलावठी शायरी | शाही शायरी

नातिक़ गुलावठी शेर

109 शेर

तुम अगर जाओ तो वहशत मिरी खा जाए मुझे
घर जुदा खाने को आए दर-ओ-दीवार जुदा

नातिक़ गुलावठी




तुम ऐसे अच्छे कि अच्छे नहीं किसी के साथ
मैं वो बुरा कि किसी का बुरा नहीं करता

नातिक़ गुलावठी




तुम्हारी बात का इतना है ए'तिबार हमें
कि एक बात नहीं ए'तिबार के क़ाबिल

नातिक़ गुलावठी




उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला
हम चले ऐ जिस्म-ए-बे-जाँ अलविदाअ'

नातिक़ गुलावठी




उसे पा-ब-गिल न रखता जो ख़याल-ए-तीरा-बख़्ती
जिसे ज़र्रा कह रहे हो यही इक शरार होता

नातिक़ गुलावठी




वफ़ा पर नाज़ हम को उन को अपनी बेवफ़ाई पर
कोई मुँह आइने में देखता है कोई पानी में

नातिक़ गुलावठी




वहाँ से ले गई नाकाम बदबख़्तों को ख़ुद-कामी
जहाँ चश्म-ए-करम से ख़ुद-ब-ख़ुद कुछ काम होना था

नातिक़ गुलावठी




ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
मुझे ताज़ा याद-ए-बुताँ हुइ जो हरम से शोर-ए-अज़ाँ उठा

नातिक़ गुलावठी




ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
कुछ क्यूँ न था जहान में कुछ तो ज़रूर था

नातिक़ गुलावठी