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नादिर शाहजहाँ पुरी शायरी | शाही शायरी

नादिर शाहजहाँ पुरी शेर

12 शेर

बा'द मरने के भी अरमान यही है ऐ दोस्त
रूह मेरी तिरे आग़ोश-ए-मोहब्बत में रहे

नादिर शाहजहाँ पुरी




भरे रहते हैं अश्क आँखों में हर दम
मिरी हर साँस में अब ग़म की बू है

नादिर शाहजहाँ पुरी




इंसान के दिल को ही कोई साज़ नहीं है
किस पर्दे में वर्ना तिरी आवाज़ नहीं है

नादिर शाहजहाँ पुरी




जल बुझूँगा भड़क के दम भर में
मैं हूँ गोया दिया दिवाली का

नादिर शाहजहाँ पुरी




जो भी दे दे वो करम से वही ले ले 'नादिर'
मुँह से माँगो तो ख़ुदा और ख़फ़ा होता है

नादिर शाहजहाँ पुरी




किसी से फिर मैं क्या उम्मीद रक्खूँ
मिरी उम्मीद तो यारब तू ही है

नादिर शाहजहाँ पुरी




मतलब का ज़माना है 'नादिर' कोई क्या देगा
मुझ सोख़ता-ए-क़िस्मत को देगा तो ख़ुदा देगा

नादिर शाहजहाँ पुरी




नंग है राज़-ए-मोहब्बत का नुमायाँ होना
मर भी जाऊँ मैं अगर तुम न परेशाँ होना

नादिर शाहजहाँ पुरी




पत्थरों पे नाम लिखता हूँ तिरा
देख तू ओ बुत मिरी दीवानगी

नादिर शाहजहाँ पुरी