फूल खुलते ही तितली भी आई
क्या कोई दोस्ती पुरानी है
नादिर शाहजहाँ पुरी
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रहमत-ए-हक़ को न कर मायूस अपने फ़ेअ'ल से
वो भलाई में नहीं जो है बुराई में मज़ा
नादिर शाहजहाँ पुरी
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तुझे देखा तिरे जल्वों को देखा
ख़ुदा को देख कर अब क्या करूँगा
नादिर शाहजहाँ पुरी
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