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माँगना काम मुझ सवाली का | शाही शायरी
mangna kaam mujh sawali ka

ग़ज़ल

माँगना काम मुझ सवाली का

नादिर शाहजहाँ पुरी

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माँगना काम मुझ सवाली का
बख़्शना तेरी ज़ात-ए-आली का

क्यूँ गिराया है अपनी नज़रों से
हुक्म कर दे मिरी बहाली का

तू ही वो फूल है जो है महबूब
पत्ते पत्ते का डाली डाली का

बात जो भी कहो वो साफ़ कहो
काम किया फ़ज़्ल-ए-एहतिमाली का

जल बुझूँगा भड़क के दम भर में
मैं हूँ गोया दिया दिवाली का

'नादिर' ऐसा कलाम है मेरा
साद है जिस पे ला-ज़वाली का