कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है
यूँ तो पर्दे में सभी पर्दा-नशीं अच्छे हैं
मुज़्तर ख़ैराबादी
कोई ले ले तो दिल देने को मैं तय्यार बैठा हूँ
कोई माँगे तो अपनी जान तक क़ुर्बान करता हूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
कुछ न पूछो कि क्यूँ गया काबे
उन बुतों को सलाम करना था
मुज़्तर ख़ैराबादी
कुछ तुम्हीं तो एक दुनिया में नहीं
और भी हैं सैकड़ों इस नाम के
मुज़्तर ख़ैराबादी
कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को
इस बुरे हाल में भी हम तो यहीं अच्छे हैं
मुज़्तर ख़ैराबादी
क्या असर ख़ाक था मजनूँ के फटे कपड़ों में
एक टुकड़ा भी तो लैला का गरेबाँ न हुआ
मुज़्तर ख़ैराबादी
लड़ाई है तो अच्छा रात-भर यूँ ही बसर कर लो
हम अपना मुँह इधर कर लें तुम अपना मुँह उधर कर लो
मुज़्तर ख़ैराबादी
लुत्फ़-ए-क़ुर्बत है मय-परस्ती में
मैं ख़ुदा देखता हूँ मस्ती में
मुज़्तर ख़ैराबादी
मदहोश ही रहा मैं जहान-ए-ख़राब में
गूंधी गई थी क्या मिरी मिट्टी शराब में
मुज़्तर ख़ैराबादी