डर है कहीं मैं दश्त की जानिब निकल न जाऊँ
बैठा हूँ अपने पाँव में ज़ंजीर डाल कर
मोहसिन असरार
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बहुत कुछ तुम से कहना था मगर मैं कह न पाया
लो मेरी डाइरी रख लो मुझे नींद आ रही है
मोहसिन असरार
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बहुत अच्छा तिरी क़ुर्बत में गुज़रा आज का दिन
बस अब घर जाएँगे और कल की तय्यारी करेंगे
मोहसिन असरार
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अजीब शख़्स था लौटा गया मिरा सब कुछ
मुआवज़ा न लिया देख-भाल करने का
मोहसिन असरार
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