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मोहसिन असरार शायरी | शाही शायरी

मोहसिन असरार शेर

22 शेर

डर है कहीं मैं दश्त की जानिब निकल न जाऊँ
बैठा हूँ अपने पाँव में ज़ंजीर डाल कर

मोहसिन असरार




बहुत कुछ तुम से कहना था मगर मैं कह न पाया
लो मेरी डाइरी रख लो मुझे नींद आ रही है

मोहसिन असरार




बहुत अच्छा तिरी क़ुर्बत में गुज़रा आज का दिन
बस अब घर जाएँगे और कल की तय्यारी करेंगे

मोहसिन असरार




अजीब शख़्स था लौटा गया मिरा सब कुछ
मुआवज़ा न लिया देख-भाल करने का

मोहसिन असरार